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गंगा माँ

(गंगा माँ और बच्चों का वार्तालाप)

बच्चे
हे गंगा माँ! हे गंगा माँ! 
तुम कैसे धरा पर आतीं? 
और कैसे गंगा कहलातीं? 
फिर कहाँ-कहाँ से बहते हुए 
तुम कहाँ जाकर समातीं ? 
कृपा करके हमें बताओ 
कृपा दृष्टि हम पर बरसाओ। 

गंगा माँ,
मेरे प्यारे बच्चों! सुनो,
रघुवंशी भागीरथ ने 
जब की थी घोर तपस्या, 
तब भागीरथी बन मैंने 
उनकी की थी पूरी इच्छा, 

अब सुनो, गंगा मैं कैसे बनती?

उत्तराखंड  में दो हिमनद, 
एक गंगोत्री; एक सतोपथ, 
गंगोत्री से निकलती भागीरथी, 
सतोपथ से निकलतीं दो नदी, 
जिनमें एक है होती विष्णु गंगा
और दूसरी होती धौलीगंगा, 
तब विष्णुप्रयाग पर कर संगम
बनातीं वे अलकनंदा, 

फिर अलकनंदा आगे बढ़ती है 
कई नदियाँ उसमें मिलती हैं, 
और कई प्रयागों से बहते हुए 
वह देवप्रयाग तक पहुँचती है, 
जहाँ भागीरथी से कर संगम
मेरा निर्माण करती है। 

फिर वहाँ से आगे बढ़ती हुई
मैं पाँच राज्यों में बहती हूंँ, 
और बांग्लादेश से होते हुए 
बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूंँ। 

सबसे बड़ा अपवाह तंत्र मेरा 
कई नदियाँ मेरी सहायक हैं, 
यमुना, चंबल, गोमती, कोसी 
सबका मुझमें ही समागम है। 

जब पहुँचती मैं पश्चिमी बंगाल में
दो धारा में बैठ जाती हूंँ , 
हुगली बन वहीं रह जाती
भागीरथी बन आगे बढ़ती हूंँ। 

फिर बांग्लादेश में पदमा कहलाती
ब्रह्मपुत्र से मिलती हूंँ, 
फिर मणिपुर की मेघना से
मिलकर खाड़ी में समा जाती हूंँ। 

बच्चों!  एक बात और सुनो,

जिस क्षेत्र से भी मैं बहती हूंँ
उपजाऊ उसे बनाती हूंँ , 
उस क्षेत्र के असंख्य जीवों का
भरण-पोषण मैं करती हूंँ । 

पर जब मैं दूषित होती हूँ  
तब वेदना से भर जाती हूंँ, 
और फिर तुम को सबक सिखाने
विनाशक भी बन जाती हूँ। 

इसलिए तुम मेरा सम्मान करो 
मुझको यूँ न दूषित करो, 
मैं तो प्यारी माँ हूंँ तुम्हारी
मत मुझसे खिलवाड़ करो। 

बच्चे,
अच्छा माँ! अब जान गए
तुमको हम पहचान गए, 
प्रण अब यह लेते सब हम
दूषित तुमको न करेंगे हम। 
स्वच्छता का अब ध्यान रखेंगे
गंदगी न फैलाने देंगे, 
अन्नदान कर जीवों को तुम्हारे
शीश झुका तुम्हें नमन करेंगे ।। 

(गंगा माँ और बच्चों का वार्तालाप)

बच्चे
हे गंगा माँ! हे गंगा माँ! 
तुम कैसे धरा पर आतीं? 
और कैसे गंगा कहलातीं? 
फिर कहाँ-कहाँ से बहते हुए 
तुम कहाँ जाकर समातीं ? 
कृपा करके हमें बताओ 
कृपा दृष्टि हम पर बरसाओ। 

गंगा माँ,
मेरे प्यारे बच्चों! सुनो,
रघुवंशी भागीरथ ने 
जब की थी घोर तपस्या, 
तब भागीरथी बन मैंने 
उनकी की थी पूरी इच्छा, 

अब सुनो, गंगा मैं कैसे बनती?

उत्तराखंड  में दो हिमनद, 
एक गंगोत्री; एक सतोपथ, 
गंगोत्री से निकलती भागीरथी, 
सतोपथ से निकलतीं दो नदी, 
जिनमें एक है होती विष्णु गंगा
और दूसरी होती धौलीगंगा, 
तब विष्णुप्रयाग पर कर संगम
बनातीं वे अलकनंदा, 

फिर अलकनंदा आगे बढ़ती है 
कई नदियाँ उसमें मिलती हैं, 
और कई प्रयागों से बहते हुए 
वह देवप्रयाग तक पहुँचती है, 
जहाँ भागीरथी से कर संगम
मेरा निर्माण करती है। 

फिर वहाँ से आगे बढ़ती हुई
मैं पाँच राज्यों में बहती हूंँ, 
और बांग्लादेश से होते हुए 
बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूंँ। 

सबसे बड़ा अपवाह तंत्र मेरा 
कई नदियाँ मेरी सहायक हैं, 
यमुना, चंबल, गोमती, कोसी 
सबका मुझमें ही समागम है। 

जब पहुँचती मैं पश्चिमी बंगाल में
दो धारा में बैठ जाती हूंँ , 
हुगली बन वहीं रह जाती
भागीरथी बन आगे बढ़ती हूंँ। 

फिर बांग्लादेश में पदमा कहलाती
ब्रह्मपुत्र से मिलती हूंँ, 
फिर मणिपुर की मेघना से
मिलकर खाड़ी में समा जाती हूंँ। 

बच्चों!  एक बात और सुनो,

जिस क्षेत्र से भी मैं बहती हूंँ
उपजाऊ उसे बनाती हूंँ , 
उस क्षेत्र के असंख्य जीवों का
भरण-पोषण मैं करती हूंँ । 

पर जब मैं दूषित होती हूँ  
तब वेदना से भर जाती हूंँ, 
और फिर तुम को सबक सिखाने
विनाशक भी बन जाती हूँ। 

इसलिए तुम मेरा सम्मान करो 
मुझको यूँ न दूषित करो, 
मैं तो प्यारी माँ हूंँ तुम्हारी
मत मुझसे खिलवाड़ करो। 

बच्चे,
अच्छा माँ! अब जान गए
तुमको हम पहचान गए, 
प्रण अब यह लेते सब हम
दूषित तुमको न करेंगे हम। 
स्वच्छता का अब ध्यान रखेंगे
गंदगी न फैलाने देंगे, 
अन्नदान कर जीवों को तुम्हारे
शीश झुका तुम्हें नमन करेंगे ।। 

✍️
स्वाति शर्मा (सहायक अध्यापिका ) 
प्राथमिक विद्यालय मडैयन कलां
विकास क्षेत्र - ऊंँचागांँव
जनपद - बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश


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