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कहाँ मना है..

 कहाँ मना है..

बेवज़ह सड़कों पर निकलना
मना है...
पर कहाँ मना है....
आज इस नाज़ुक दौर में...
मदद के लिए आगे हाथ बढ़ाना
बेबस ,बेआसरों को आसरा देना,
भटकते राही को राह दिखाना
ज़रूरतमन्दों को इस त्रासदी से उबारना,
सूनी ,निराश आँखों में आस जगाना
कहाँ मना है..!!

बेवज़ह सड़कों पर निकलना मना है
पर....कहाँ मना है....
आस-पास के घरों में झाँक आना,
बुझे चूल्हें को जलाना,
एक निवाला खुद तो दूसरा उन्हें खिलाना,
जलती अतड़ियों की क्षुदा मिटाना,
उजड़े आशियाने को फिर से बसाना,
नाउम्मीदी के अंधेरों में उम्मीद के दीए जलाना,
कहाँ मना है...!!

बेवज़ह सड़कों पर निकलना मना है....
पर ....कहाँ मना है...
मुफ़लिसी में जी रहे लोगों के...
ख़्वाबों को टूटने से बचाना ,
होठों पर फिर वही मुस्कान लाना,
अकेले नहीं वे ....ये जतलाना,
नया जोश , भरपूर हिम्मत दिलाना,
नयी शुरूआत की दिशा दिखलाना,
कहाँ मना है.....!!

बेवज़ह सड़कों पर  निकलना मना है...
पर ...कहाँ मना है..
बेज़ुबानों को पुचकारना,
दुलराना...खाने को कुछ रख आना,
मानवता  दर्शा संवेदनशील बन जाना,
इंसानियत का परिचय कराना,
दो ग़ज दूरी रखकर भी....
सभी के दिलों में बस जाना....
कहाँ मना है...!!

✍️
सारिका रस्तोगी
पूर्व मा0 वि0 फुलवरिया
गोरखपुर

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