दोहरे चरित्र
दोहरे चरित्र
जनाब ये दुनिया है यंहा दोहरे चरित्र रखने पड़ते है ।
घर से जब मैं निकला सीधा साधा,
मन मे सत्यनिष्ठा का बेड़ा लिए ।
तभी किसी ने हंसाया ,किसी ने बुद्धू बुलाया
और कइयों ने फायदा उठाया ।
फिर वही जो मेरे मुंह पर मेरी तारीफ़ों के पुल बांधते थे,
मेरे उठ के जाने के बाद ही मेरा मौखौल मजाक उड़ाते देखा ।
सीधा साधा का टैग अब मुझे समझ नही आता ,
कोई कुछ भी कहे या ऊंची आवाज में
मुझे चिला दे तो सहम जाता।
वो कह देते थे डरपोक है।
चलते चलते धक्के खाते खाते,
इतना मजबूत और चालक बना दिया दुनिया ने ,
की आज लोग मेरा उदाहरण दे कर बोलते है
की चलाकी कोई आपसे सीखे ।
कैसे बताओं और समझाओं जनाब इन्हें,
की आपके धक्के और इल्जामों ने ,
मुझे देखिए दुहरी ज़िन्दगी जीना सिखा दिया ।
आप अब जैसे बोलते है जनाब, मैं उसका झट उल्टा जवाब देना सीख गई हूँ ।
वो आंखों के इशारे मुझे भी समझ आने लगे है ।
लेकिन अब क्या करूँ समाज मे इसके नियम कानून सीखे बिना भी क्या कोई रह सका है ।
सबके मुँह पर झूठ भी मैं अब सफाई से बोलती हू।
और उसके जाने के बाद हँसकर कुछ मजे मैं भी करती हूं।
पर जब मैं एकान्त में होती हूँ,
तो बस यही सोंचती हूँ की क्यों मनुष्य अपने मूल स्वभाव में लोगों को अकड़ू ,पागल और मूर्ख लगता है।
और जो हम ये दुहरी ज़िंदगी जी रहे है,
क्या हम समझदार और बड़े चालाक है,
अब मैं समाज से अलग जाओंगी तो आप विद्रोही बोलेंगे
ना ना मुझे ऐसा नही करना ।
चल रही हूं मैं भी अपना पाक साफ दिल लेकर आपकी इस दोहरी ज़िंदगी मे ।
अब समझ आया जनाब ये दुनिया है
यंहा दोहरे चरित्र रखने पड़ते है ।।
अंजली मिश्रा (स.अ.)
प्राथमिक विद्यालय असनी प्रथम
ब्लॉक- भिटौरा
जिला -फतेहपुर
कोई टिप्पणी नहीं