नवयुग
नवयुग
दुःख समस्याओं का जो अंबार है
चेत न रहे हम प्रकृति का प्रहार है
सदियां गुज़र गई अच्छे - बुरे दौर आए,
हंसकर हम सबने गले लगाएं।
सबको अपनों से दूर करने वाला
यह दौर भी गुज़र जायेगा
खूबसूरत यह चमन
फिर से जगमगाएगा।
करुणा श्रद्धा से पूर्ण मानव
अपने - अपने ईष्ट को सर नवाऐगा,
उमंग उल्लास से हर प्राणी मुस्कुराएगा।
कल - कल करती स्वच्छ नदियों का जल अमृत पान करायेगा।
खेतों में हरियाली होगी,
बागों में पंछी फिर से मधुर तान सुनाएगा।
नई दुनिया के ख्वाब सजाने
सतरंगी रंग भरना होगा,
ढोंग पाखंड से होकर दूर
मानवता की रक्षा खातिर
अंधी दौड़ से बचना होगा।
नवयुग का होगा निर्माण
जाति - धर्म की खाईं पाट
भाईचारे का संसार रचना होगा।।
रवीन्द्र नाथ यादव (स. अ.)
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फबघोर नवीन
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