पर्यावरण
पर्यावरण
निज धरा पर हरियाली संग
खेलती प्रकृति अठखेलियां,
रम जाता है मन वादियो की
खूबसूरती में
ठहर जाती है दुनियाँ।
ओढ़ झीनी सी चदरिया
लालिमा प्रकृति जब-जब बिखेरती,
झरनों की कल-कल
कानों में मधुर रस घोलती।
कानन,पर्वत,धरा,
नहा लेती है संग हरीतिमा,
लख हरीतिमा अनुपम सौंदर्य
मन मयूर मुदित होता छा जाती है
खुशियाँ
पर................…...…
हो रहा दोहन धरा का
करुण क्रंदन करती अब वही प्रकृति,
छिन्न-भिन्न कटाव वनों का,
खूबसूरती की बदल देती है नियति।
मन रमता था जहाँ आज अश्रुधार बहीे,
पर्यावरण असंतुलन की ऐसी बयार चली।
खो रही अब सौम्यता , खो रही रूप धरा,
प्रकृति की दशा लख पल-पल होता हमे अपार दुःख ।
फिर भी........…..…
ले चली में बालकों की टोली,
पर्यावरण संरक्षण है जरूरी ।
ठान ले गर नौनिहाल बदलेगी तस्वीर,
लहलहायेगी प्रकृति खुशी से खिल उठेगी प्यारी धरा।
अन्तरहृदय से बचन ले चल पड़ी मै सोच के ,
एक-एक पौधों को लगाना हैं ,
प्रकृति को क्रूर हाथों से बचाना है,
फिर से.......….……
नव ऊर्जा, नव रंग, नव छटा, चहु ओर नव खुशिया बिखेरना है।।
✍️
ममता प्रीति श्रीवास्तव(स0अ0)
गोरखपुर
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