कालचक्र
कालचक्र
जो इस दुनिया में आया है
कालचक्र से न बच पाया है,
जन्म से लेकर मृत्यु तक
इसी ने तो मदारी बन
सबको नचाया है...
कोई बना राजा
तो कोई बना रंक,
कालचक्र के ग्रंथ में
मिलते हैं सभी अंक...
इसका कोई पार नहीं
हर घड़ी यह परीक्षा लेता है,
अपने नियमों के तराजू में
हमें यह पल-पल तोलता है...
चाहता है हमसे यह,
हम स्थिर रहें, शांत रहें,
इस झूठी मोह माया का
कभी न ज्यादा घमंड करें...
खुद को न खुदा समझें
नियति के अधीन चलें,
परिस्थिति हो सम या विषम
पर हर परिस्थिति में
हम पूर्णांक रहें...
करता है यह सजग हमें
पर हम नहीं समझ पाते हैं,
बस दोष मढ़ते रहते इस पर
स्वयं को न सुधारते हैं...
यही जहांँ देता है गम
तो यही देता है हमें खुशी,
मुरझाए हुए चेहरों पर फिर से
यही तो लाता है हंसी...
बंद करो दोष देना इसे
खुद के अंदर झाँको ज़रा,
नियमों का इसके पालन करके
स्वयं को संयमित बनाओ ज़रा...
✍️
स्वाति शर्मा (सहायक अध्यापिका )
प्राथमिक विद्यालय मडैयन कलां
विकास क्षेत्र - ऊंँचागांँव
जनपद - बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
Nice
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