धरती की पुकार
धरती की पुकार
अरे मानव !मत कर अब मेरे अंगों को तार-तार ।
सुन ले इस धरा की पुकार ।।
ये हरे भरे वृक्ष भुजाएं है मेरी,
जो बुलाती हैं तुझे बांहे पसार।
अमराइयों से लदे हिंडोले में,
जो झुलाती हैं तुझे गलबहियां डाल।।
मत कर तू मेरे अंगों को तार-तार।
नीम की छांव में दो पल खुद को सुकून लेने दे,
घनी हरियाली को पल भर तू निहार।
मैं करूं तुझसे यही गुहार,
मत कर तू मेरे अंगों को तार-तार।।
ये ठंडी हवा के झोंके जो विचरते थे,
कभी अलमस्त हो मेरे आस-पास।
वन-उपवन लता-कुंज खेत- खलिहान में।
आज गुजरती हैं विष युक्त होकर,
तेरी महत्वाकांक्षा ने किया विषैली हवा का प्रसार।।
मत कर तू अब मेरे अंगों को तार-तार।।
ऐ मानव खोल चक्षु और संसार निहार,
भीषण विभीषिका से खुद संभल और मुझे संभाल।
मेरी ममता आज भी रोती है,
तेरी नादानियों को मै कब तक करूं बर्दाश्त।।
ऐ मानव!मत कर अब मेरे अंगों को तार-तार।।
✍️
नीलम भदौरिया
प्रधानाध्यापिका
प्राथमिक विद्यालय पहरवापुर
मलवां,फतेहपुर
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