"मेरे पिता की सीख"
"मेरे पिता की सीख"
विघ्नों के पथ पर चलते चलते,
कभी न हिम्मत हारो तुम।
यही सिखाया पिता ने मुझको,
कठिनाई में बाजी मारो तुम।
अगर हो ना निराश कभी तुम,
रखो एक बात हमेशा ध्यान ।
हर मुश्किल हो जाएगी हल,
हो उत्साहित पुनः करो काम।
निंदा होती है तो होने दो, पथ से विचलित ना होना तुम।
बाधाएं जितनी आ जाए, पल एक न धीरज खोना तुम।
मेरे पिता की यही सीख मेरे जीवन को प्रेरित करती है।
हर पल हर क्षण हर मुश्किल में,
मेरे सारे कष्ट, सारे दुखों को हरती है।
✍️रचयिता
प्रियदर्शिनी तिवारी
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
📱89539 54241
ईमेल एड्रेस-priyaraj.pp6@gmail.com
⚫परिचय⚫
मैं प्रियदर्शिनी तिवारी प्रयागराज उत्तर प्रदेश से हूं। मैं कौशांबी जनपद में बेसिक शिक्षा विभाग में प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत हूं। मुझे कविताएं और गीत लिखने में विशेष रुचि है। मेरी कई रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई हैं और मुझे कई साहित्यिक मंच द्वारा सम्मानित भी किया गया है।
बहुत बहुत बहुत ही सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंSuper
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता
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