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धधक रही जो हृदय में ज्वाला

धधक रही जो हृदय में ज्वाला

देखा आज जब ऐसा मंज़र 
धधक उठी ह्रदय में ज्वाला, 
बिना बात के चीन ये तूने 
कैसा अनर्थ है कर डाला! 

गया किसी की आँखों का तारा 
तो गया किसी का साजन, 
गया किसी का भाई 
तो सूना हुआ किसी का आँगन। 

एक तो अभी कुंवारा ही था 
एक ने न देखी बेटी, 
नयना बह गए देख वह दृश्य 
जब दुधमुंही बेटी कफन पर लेटी। 

कितनी उजड़ गई हैं माँगें 
कितने उजड़ गए हैं घर, 
चुन-चुन कर अब बदला लेंगे 
कस ली है अब हमने कमर। 

चीन जो तू यूँ इठलाता है 
अपनी अर्थव्यवस्था पर, 
बहिष्कार कर अब सामान का 
रुला देंगे तुझे जी भर कर। 

अब अति हो गई तेरी 
तुझे सबक सिखाएंगे 
धधक रही जो हृदय में में ज्वाला 
उससे तुझे जलाएंगे। 

पर अभी भी वक्त है संभल जा ज़रा 
नहीं तो बड़ा पछताएगा, 
नहीं हटा जो पीछे तू
तेरा नामोनिशान मिट जाएगा।। 

✍️ 
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश

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