निशानी
नमन मंच
विषय- निशानी
शीर्षक- बड़ी टीस होती है देखकर ऐसी निशानी
आज पहुँची विद्यालय में,
तो थीं वहाँ गुटके की पीक की निशानी,
जो छिटकीं हुईं थीं जगह-जगह,
कुछ ज़मीन पर तो कुछ दीवारों पर,
तो कुछ दिखीं दीवार पर अंकित
शिक्षकों के नाम व मोबाइल नंबर पर।
निशानी थीं और भी कुछ,
माचिस की तीलियों की,
खाली प्लास्टिक के गिलासों की,
खाली शराब की बोतलों की,
और ताश की फटी हुई गड्डियों की।
पहले न थी चहारदीवारी,
तो यूँ परेशान थी,
अब तो वह भी हो गई,
तो देख इस दृश्य को मैं हैरान थी!
और खड़े-खड़े सोचने लगी,
कि लोगों की तुच्छ मानसिकता
कब जाएगी?
और कब विद्यालय को
मंदिर समझने की भावना आएगी?
जहाँ बच्चे पढ़ते हैं
इन्हीं लोगों के,
वहीं जुआ खेलते हैं ये,
उसे अड्डा समझ के!
जहाँ होता है तैयार
देश का भविष्य,
जहाँ सुनाई जाती है प्राँगण में
रोज़ नई कहानियाँ,
बड़ी टीस होती है देख कर वहाँ
ऐसी निशानियाँ!
और आ जाती है
माथे पर शिकन
व बढ़ जाती है मन की परेशानियाँ।
कि कैसे बदलेगी सोच,
और कैसे होगा देश का विकास?
विद्यालय को पूजते नहीं जहाँ लोग,
बस नशे में डूबा है जहाँ समाज!
बड़ी टीस होती है देख
ऐसी निशानी,
और बड़ी टीस हो रही है
सुनाने में ऐसी कहानी,
वो भी अपनी जु़बानी!
✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर
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