सड़क
विषय- सड़क
शीर्षक- हाँ, मैं सड़क हूँ
हाँ, मैं सड़क हूँ,
जो देखती है इस दुनिया को
हर क्षण रंग बदलते हुए,
स्वार्थ की सरिता में नहाते हुए,
और भ्रष्टाचार का जलसा मनाते हुए ।
हाँ, मैं सड़क हूँ,
जो चलने से ज्यादा
थूकने के लिए बनी है,
और लोगों के घरों का
कचरा ढोने के लिए बनी है,
वैसे तो कितने
स्वच्छता अभियान चलाए जाते हैं,
लेकिन पढ़े-लिखे लोग ही मुझे
गंदा करते नजर आते हैं,
आखिर कब जाकर सभी
सच में साक्षर होंगे?
और अपने देश की सड़कों को
स्वच्छ रखेंगे?
हाँ, मैं सड़क हूँ,
जिसे बनाने के लिए
करोड़ों का प्रस्ताव पारित होता है,
पर मुझ पर
कुछ लाख ही खर्च होता है,
बाकी का चुपचाप गबन होता है,
फिर एक बारिश में ही मेरा
नवीनीकरण दिख जाता है,
चाहे विद्यालय पहुँचने में हो देरी,
या रास्ते में ही तोड़ दे दम रोगी,
पर भ्रष्टाचार के आगे
कोई कुछ न कर पाता है,
और रोना तो तब आता है मुझे,
जब इस भ्रष्टाचार का
मुख्य आधार ही मुझे बनाया जाता है!
हाँ, मैं सड़क हूँ,
जो देखती है इस दुनिया को
हर क्षण रंग बदलते हुए,
स्वार्थ की सरिता में नहाते हुए,
और भ्रष्टाचार का जलसा मनाते हुए ।
✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर
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