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क्या खोया क्या पाया 2020

क्या खोया क्या पाया 2020

गुलाबी ठंड की थी दस्तक,
गुनगुनी धूप चढ़ रही थी मस्तक,
चुपके चुपके से होली का आना,
रंगों की दुनिया की थी ये आहट।

क्या खोया क्या पाया,
कितनों पर था गम का साया,
कोरोना ने भी  आहिस्ता से,
अपना पांव था जमाया।

बिखर गए सपने अपनों के,
गुम हो गए बचपन बच्चों के,
चारदीवारी में सिमट कर रह गए,
चाहत के किस्से कितनों के।

दो गज दूरी मास्क जरूरी,
इससे करो न बिल्कुल दूरी,
स्वच्छता को जीवन में अपनाओ,
क्वारंटाइन होना बन गया मजबूरी।

लॉकडाउन ने बदल दी जीवन की चाल,
घर बैठे बैठे हो गया मानव बेहाल,
धनोपार्जन कैसे हो यही चिंता सताए,
मानव ही बनेगा अब मानव की ढाल।

नववर्ष के आगमन ने दी कुछ राहत,
जीने की जाग उठी थी अब चाहत,
ग़मों का साया अब ना फैलाए चादर,
जिंदगी से चाहूं खुशियों की सौगात।

✍️
स्वरचित
नम्रता श्रीवास्तव (प्रधानाध्यापिका)
प्राथमिक विद्यालय बड़ेहा स्योंढा
महुआ( बांदा)

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