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तपती दोपहरी

तपती दोपहरी


तपती दोपहरी में भइया,
गर्मी से है हाल बुरा।
तपता सूरज ,चढ़ता पारा,
व्याकुल है यह तन-मन सारा।।

पंखे नें है हार मान ली,
फेल हो गए कूलर, एसी।
जलती, प्यासी है यह धरती,
पानी की बूँदों को तरसी।।

सूख गए हैं ताल- तलैया,
सूख रहे हैं सब वन उपवन ।
लंबी चौड़ी सड़क चमकती,
छाया पथिक को किंतु न मिलती।।

कंक्रीट के फैले जंगल,
वृक्षों की छाया है दुर्लभ ।
पशु -पक्षी भी हुए हैं बेबस,
दाना- पानी मिल जाए बस।।

काश मनुष्य समझ यह पाता, 
समय रहते वृक्ष उगाता।
प्रकृति का करता वह रक्षण,
पाता शुद्ध वायु , शीतल जल ।।

समय अभी है चेतो प्यारे,
पेड़ लगाओ मिलकर सारे।
पर्यावरण संतुलन बनाओ, 
जीवन का सच्चा सुख पाओ।।

 
शालिनी श्रीवास्तव 'सनशाइन'
सहायक अध्यापिका
पी.एम.श्री विद्यालय गुलहरिया प्रथम 
विकासखंड-भटहट ,जनपद-गोरखपुर ।

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