पाठशाला बंद
पाठशाला बंद
कैसी विपदा,कैसी मनसा
खुशियां सारी झुलस रही है।
विद्यालय के सारे फूल मूर्छित होने को बेबस है।
यह कैसे काँटे उगे राहों में,हर ओर कैसी निराशा है।
पंख कट उठे गिरे धरा पर!
स्वप्नों के आरोहण धराशाई हैं।
हो रही निरुद्ध क्यों?
अपनी पाठशाला है।
अनुदेश कैसा?
यह भेजा
संख्या कम तो पाठशाला बंद...
दो से तीन मील आगे
अगली पाठशाला भेजा जाएगा।
नहीं है हृदय में तनिक संवेदना, वंचित हर सुविधा से यह नन्हे पुष्प...
अब क्या इन्हें पाठशाला से भी
वंचित कर दिया जाएगा।
क्या यह नन्हे कदम
इतनी लंबी मील को तय कर पाएगा।
गुजारिश समझो या फिर जरूरत....
दुःख के इस उलझे झंझावातों में, कोमल मन बगिया को
इस कठोरता से मत कुचलो।
छोटी बूंदों की बारिश है ये
अरमान मिट्टी में इनके मत मसलों।
शिक्षा पथ को प्रकाशित कर हमने किरणों को अपनाया।
अल्पता को तज कर हमने
इस मधुबन को महकाया। प्रांगण के उजले तारे हैं ये
कुछ स्वप्न लेकर आते हैं।
अशन विद्या पाकर स्वप्नों को दृग में सजाते हैं।
जब टूटेगा यह स्वप्न तो
दर्द इन्हें तो होगा।
मैं भी तो हूं माली इन स्वप्नों का
मन मेरा भी कुंठित होगा।
आते हैं जो रोज़
दृग में नई किरणों को लेकर
उनको तो आने दो।
उनकी मेरी इस स्वप्नों की पाठशाला को
यूं ऐसे तो.....
ना बंद करो।
पाठशाला तो ना बंद करो।
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दीप्ति राय दीपांजलि
कंपोजिट विद्यालय रायगंज,क्षेत्र - खोराबार, गोरखपुर।
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