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मैं धरती हूँ

मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ।
पाला पोषा और बडा किया,
हमने ही तुमको खड़ा किया।
तुम इतना क्यों इतराते हो,
थोड़ा भी समझ न पाते हो।
तेरे विकास की परिभाषा,
तोड़े दिन रात मेरी आशा।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ ।।१।।

तू अपना है कोई गैर नही,
पर सुनलो तेरी खैर नही।
वन निर्दयता से काट रहे,
परिणाम भी तुमको ज्ञात रहे।
मुझको विद्रूप बनाकर क्या,
तुम रूपवान कहलाओगे।
जब घुटन भरी सांसें होंगी,
तो मन कैसे बहलाओगे।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ ।।२।।


मेरे ही तन को काट रहे,
अब दूध कहाँ से पाओगे।
सारे वन निर्वन बना रहे,
फल फूल कहाँ से लाओगे।
सारे नद नाले सूख रहे,
तब जल कहाँ से पाओगे ।
मैं भी उर्वर थी यहाँ कभी,
किसको यह कथा सुनाओगे।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ ।।३।।


वृक्षों को गर तुम खोओगे,
निश्चय ही आगे रोओगे।
वर्षा सूखा सब झेलोगे,
तु किसकी गोद मे खेलोगे।
जब ऊसर मैं बन जाउंगी,
फिर अन्न कहाँ उपजाऊँगी।
भूखे तुमको सोना होगा,
या पेट पकड़ रोना होगा।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ ।।४।।

उद्योगों के उद्यम से ही,
उत्पात तुम्ही कर डाले हो ।
जल-थल दूषित कर डाले हो,
क्या तुम मेरे रखवाले हो।
सारे जन जीवन को तुम क्यों,
इतना संकट में डाले हो।
सबसे उर्वर तेरी बुद्धि,
तू भ्रम मन मे क्यों पाले हो।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ ।।५।।

जिस पथ पर चल पथभ्रष्ट हुए,
उस पथ का त्याग जरूरी है।
पर्वत काटे नदियाँ बाँधी,
क्या ये सब भी मजबूरी है।
अपना अस्तित्व मिटाने को,
क्यों आकुल हो तुम व्याकुल हो।
किसको किसको समझओगे,
तुम अपने हो मेरे कुल हो।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ।।६।।

कलियों का खिलना बन्द हुआ,
पेड़ों की सूखी डाली है।
निर्माण अनवरत करते हो,
अब कोई जगह न खाली है।
धरती का आँगन सूना है,
फिर भी कहते हरियाली है।
सब अंधकार में डूब रहा,
फिर ए कैसी  दीवाली है।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ।।७।।

नदियों का नीर विषैला क्यों,
हिमगिरि अब इतना मैला क्यों।
क्यों पवन देव विष भरे हुए,
क्यों लोग क्यों इतने डरे हुए।
वसुधा क्यों इतनी डोल रही,
सागर की बाहें खोल रही।
निःशब्द अभी तक रहती थी,
सोचों इतना क्यों बोल रही।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ।।८।।

सूरज गोला बरसायेगा,
धरती का ताप बढ़ाएगा।
जीवन जीना मुश्किल होगा,
हर जीव भष्म हो जाएगा।
अब समय अशेष विचार करो,
तुम अपना कुछ उपकार करो।
जल जंगल मंगलमय कर दो,
सबके जीवन खुशियाँ भर दो।
मैं धरती हूँ अब कहती हूँ,
मैं मौन हुए सब सहती हूँ ll९ll

✍️
रमेश तिवारी
(सहायक अध्यापक )
प्राथमिक विद्यालय हरमन्दिर खुर्द,
क्षेत्र-फरेन्दा
जिला-महराजगंज(उत्तर-प्रदेश)
जङ्गम वाणी संख्या-९८३९२५३८३३

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