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जन्मभूमि भी हुई पराई


जन्मभूमि भी हुई पराई ,कैसी रीत जगत ने बनाई ।
मन ही मन में बेटी सोचे ,पीहर से कोई बोले न जाओ .....
बाबुल मैया के मन बदले ,पोते पोती ज्यादा भाए ,
 जन्म के नाते हुए पराए बेटी कैसे मन को मनाए ?
बेटी को देश निकाला देकर बेटे को ही गले लगाए।
रीत अनोखी ,लेख विधा के मान के बेटी मन को मनाए।
 रिद्धि, सिद्धि अन्नपूर्णा बनकर घर आंगन जो स्वर्ग बनाए ,
त्याग के बाल स्वरूप किसी के घर की वो शोभा मान बढ़ाए।
 घर की देहरी लांघ के आर्थिक संबल बन जो साथ निभाए।
बेटी बहन पत्नी माता बन वो आदर ,स्नेह ,प्रेम ,ममता लुटाए।
धन्य है बेटी बहन पत्नी माता,जो देती आशीष अपना आंचल पसारे ....
आंखों में आंसू और आंचल में माया लिए बेटी पीहर से ससुराल जाए।



✍️ प्रसून मिश्रा, बाराबंकी

                                                  

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