अंकों की दीवार
अंक ज़रूरी हैं, पर जीवन सिर्फ अंकों से नहीं चलता। इसलिए अब वक्त है कि हम इस अंधी दौड़ से बाहर निकलें और बच्चों को उनके नंबरों से नहीं, नजरिए से स्वीकारें
अंकों की दीवार
असली हुनर उसका कोई पढ़ नहीं पाता है।
हर मुस्कान में होती है एक जीत की कहानी,
पर आंकड़ों की दुनिया बस तुलना ही गाता है।
कभी सोचा है क्या बीता उस मन पर जो चुप है,
जो अंक नहीं लाया, वो क्या सपनों से दूर है?
हर चेहरा किताब नहीं, हर दिमाग एक सृजन है,
जो समझ सके जज़्बात—वही असली गुरू है।
अब तो छोड़ो ये प्रतिशतों का जाल पुराना,
बच्चे को समझो, उसके भीतर का खज़ाना।
पढ़ाई हो खोज, सवालों का उजाला हो,
ना कि सिर्फ़ रटंत में फंसा एक ज़माना।
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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