वक़्त चाहिए सपनों को आकार देने में
वक़्त चाहिए सपनों को आकार देने में
हर महान निर्माण की शुरुआत एक छोटे, अनदेखे प्रयास से होती है। जो हाथ से फिसला, वही सबक बनकर वापसी की राह दिखाता है। इन मुक्तकों में छुपा है—धैर्य, पुनःप्रयास और विश्वास का संदेश, जो हर ठहराव को नई चाल में बदलता है।
1
न एक दिवस में उगते हैं सूरज महान,
न क्षण मात्र में लिखे जाते हैं पुराण।
जो मिला है, वही संग चलने को काफी है,
जो छूटा है, वो लौटेगा समय की पहचान।
2
क्षणों में न क्रांति, न चेतन का विस्तार,
वक़्त माँगे तप, निष्ठा और अपार।
जो बीत गया, वो व्यर्थ नहीं होता कभी,
हर हार में छुपा है भविष्य का उपहार।
3
मंज़िलें नहीं बनतीं किसी एक चाल में,
ना ही ज्ञान ठहरता किसी एक ख्याल में।
जो राह छूट गई, फिर मिलेगी मोड़ पर,
पछतावा नहीं, विश्वास चाहिए हर हाल में।
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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