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शिक्षण-क्रान्ति

शिक्षण-क्रान्ति 
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वर्तमान शैक्षणिक परिदृश्य नव परिवर्तन का साक्षी है। परम्परागत शिक्षण - विधियों पर प्रश्नचिह्नों की स्याही समय के साथ और गहरी होती जा रही है। शिक्षण में बढ़ते तकनीकी प्रयोग ने परम्परागत शैली के शिक्षण को गम्भीर चुनौती दी है और उसके  अभिव्यक्ति और पहुँच के संकट को तो उजागर किया ही है स्वयं को एक सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत भी किया है । निःसंदेह कोविड- 19 जैसी वैश्विक महामारी ने इन परिवर्तनों को धार दी हो लेकिन महामारी से मुक्ति के पश्चात भी अब शिक्षण में तकनीकी के प्रयोग को कम कर पाना सम्भव नहीं है। गूगल ने ज्ञान की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करते हुए उस पर व्यक्ति विशेष के एकाधिकारों को छिन्न-भिन्न कर दिया है। प्रस्तुत है इन्हीं विचारों को आत्मसात करती ये कविता------ 


गुरु फिरें मारे - मारे ,
चेलों के वारे - न्यारे ,
ज्ञान का मटका फूट गया,    
हमें  गूगल बाबा लूट गया  । 


शिक्षा पर दीक्षा भारी ,
इंक लिंक से है हारी  ,
ऑनलाइन शिक्षण जारी, 
कक्षाएं हैं खाली - खाली ।


रीड एलोंग पठन का मूल, 
यू - ट्यूब  चलता  है  खूब ,
ई-- पौथी की मचती धूम, 
डिजिटल मंच रहा है झूम ।   


टेक्नोसेवी गुरु महान ,
परम्परा की टूटी तान,
शिक्षा की बनकर शान,
बाँट रहे हैं सबको ज्ञान। 


छोड़ो छोड़ो अब तो छोड़ो, 
हाथ लेखनी , बाट देखनी ,
नई क्रान्ति के नए अस्त्र हैं, 
अरे बदलो अपनी पैडागाॅजी ।


नई लहर है मुँह मत मोड़ो, 
शिक्षण में तकनीकी जोड़ो,
परिणाम सीखने का पाओ,
अब सब रीत पुरानी छोड़ो ।

✍️
प्रदीप तेवतिया एआरपी 
सिम्भावली, हापुड़  

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