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इक ख्वाहिश

इक ख्वाहिश

इक है बगिया बेसिक की 
हम ही जड़ हैं, हम ही मिट्टी 
ऐसा सींचो ऐसा पोसो 
देखो फ़सल बर्बाद न हो जायेl 


ऊबड़- खाबड़ डगर ये अपनी 
नित नये प्रयोजन से 
कोशिश है होती 
कहीं तो रास्ता सरल सपाट बन जायेl 

एक से बढ़कर एक नगीने 
मेरे कुनबे में निखरें 
अपनी चमक बनाये रखना यारो 
सस्ता बाज़ार हाट न बन जायेl 


मैं तुझसे और तू हो मुझसे 
तू आगे तो मैं पीछे तुझसे 
प्रतिस्पर्धा प्रतिस्पर्धा ही रहे 
गलाकाट न बन जाये 
गलाकाट न बन जाये l 🙏🏻

✍🏻रचनाकार 
डाo श्रद्धा अवस्थी 
(सoअo)
उoप्राoविo सनगाँव
हसवा फ़तेहपुर

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