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" प्रेयसी"

 " प्रेयसी"

सृष्टि में  संचरित अथकित चल रही है।
प्रेयसी ही ज्योति बन कर जल रही है।।
कपकपी सी तन बदन में कर गयी क्या,
अरुणिमा से उषा जैसे डर गयी क्या,
मेरे अंतस्थल अचल में पल रही है।।
प्रेयसी०
वह बसंती पवन सिहरन मृदु चुभन सी,
अलक लटकन नयन खंजन रति बदन सी,
अभिलाषित सरिता सी कल कल कर रही है।।प्रेयसी०
मेरे तन मन-प्राण सब पर छा रही है,
एक अलौकिक वैभव त्यक्त्या आ रही है,
मृत्यु से भी अधिकतर अटल रही है।‌। प्रेयसी ०
प्रणयिका थी प्राणहरिका हो गयी तूं,
हाय अर्णव सप्त जितना रो गयी तूं।
शेष गहरे द्वंद्व में अविकल रही है।।प्रेयसी०

✍️
शेष मणि शर्मा'इलाहाबादी'
प्रा०वि०बहेरा,वि०खं०-महोली
जनपद सीतापुर उत्तर प्रदेश 
मोब नं9415676623

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