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हर मन को शिक्षित बनाती हूं

हर मन को शिक्षित बनाती हूं📚

रोज ही सुंदर गीत कविताएं सजाती हूं ,,,सुनाती हूं ,,
ज्ञान के दीप को जलाकर 
मन के अंधेरों को भगाती हूं । 
नवसृजन कर एक वृहद 
सुंदर अंबर बनाती हूं ।
उन्नति अवनति के हर गुण को सिखाती हूं ।
मै शिक्षक हूं ,,,,हर मन को शिक्षित बनाती हूं ।
बनाते हैं सभी रुतबे ख्वाहिशों की ऊंची बुलंदियों को ,,,,
मैं टूटी आस में लिपटे कच्ची ईंटों से नई इमारतें सजाती हूं ।
मैं हूं पाबंद समय की हर पल समय की कीमत जीवन में 
पल ,पल बताती हूं ।
संस्कारों से भाव प्रांगण सुसज्जित हो ,,,
मधुर कोकिल सी वाणी 
बोलना सबको सिखाती हूं ।
मैं दूर नए परिंदे को ,,,,
ज्ञान के वृहद अंबर में ,,,
कहां कैसे हैं ,,,कब उड़ना
 ये पल ,पल सिखाती हूं।
 मैं शिक्षक हूं,, हर मन को शिक्षित बनाती हूं  ।
है जीवन में महत्व कितना 
सफाई और स्वच्छता का 
मैं गांव के बच्चे ,बूढ़े को 
शौचालय, स्वच्छता की महत्ता 
को बताती हूं  ।
मिला सुनिश्चित लक्ष्य शिक्षा का जो हमको ,,,उसे जीवंत कर 
क्षण ,क्षण मैं,,,,,,,
सरल शब्दों की सरिता में 
निस दिन बहाती हूं ।
नवसृजन के पथ पर 
नवीन शिक्षा संकल्प है 
बन पथ प्रेरक शिक्षा का ,,,,
उगा के विश्वास का सूरज 
सब में सहकार का भाव 
हर रोज जगाती हूं ।
प्रबल होगा हमारा कर्म जब
पूर्ण निष्ठा से ....तभी साकार होगा अक्षु साध्य स्वप्न अपने कर्म निष्ठा से ,,,शिक्षा में फैली सघन रजनी के अवसादों को.....।
 निज विश्वास की समझ नेतृत्व से मिटाती हूं ,,,।
मैं कोमल कोरे मन को 
सुंदर सुघड़ छवियों में सजाती हूं।
मैं हर बार एक संकल्प लेकर,,,
शिक्षा को नए आयामों ,,के साथ आगे बढ़ाने का ,,,,,
नया प्रयास लाती हूं  ।
मैं शिक्षक हूं,,,,,,, हर मन को शिक्षित बनाती हूं ।।

दीप्ति राय ( दीपांजलि) 
सहायक अध्यापक 
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार, गोरखपुर

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