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बंटवारा

"बंटवारा"

बूढ़े बरगद के चबूतरे पर घनेरी छांव में।
देखो फिर एक आज बंटवारा हुआ है गांव में।।
कुछ नये सरपंच तो कुछ पुराने आये,
कुछ बुझाने तो कुछ आग लगाने आये।
बहुत चालाक था बूढ़ा कभी न हाथ लगा,
पुराने दुश्मनों के जैसे आज भाग्य जगा।
पानी कब तक उलचें रिसती नाव में।।
देखो फिर एक०
दो भाई मां बाप बूढ़े और थोड़ी सी जमीन,
हो रही है जेवरातों की अब तो खोजबीन।
भाइयों में प्रेम बहुत था मगर विवाह पूर्व,
जबसे बहुयें आगयी है बैरता सी है अपूर्व।
जिसने बांटे कई घर वो ही रहा प्रस्ताव में।।
देखो फिर एक०
बांट ली सम्पत्ति सारी मोड़ आया किस्से मे,
रो करके मां बाप बोले हम हैं किसके हिस्से में।
छा गया सन्नाटा बज्रपात बेटों पर हुआ,
मां बाप को रखने को तैयार कोई न हुआ।
इन्हीं बेटों के लिए सब कुछ लगाया दांव में।।
देखो फिर एक ०
फैसला सरपंच ने सुना दिया होकर के तंग,
एक के संग मां रहेगी बाप दूसरे के संग।
बड़ी बहन मेरे छोटी छोटे के घर आयेंगी,
पिताजी की खाट भी पशुशाला में लग जायेगी।
इस तरह बंटवारा पूरा हुआ झांव झांव में।।
देखो फिर एक०
पकड़ कर बूढ़े को बुढ़िया असहाय हो रोने लगी,
ज़िन्दगी की आस जैसे आज ही खोने लगी।
रात में तूफान आया बूढ़ा बरगद गिर गया,
पशुशाला में सोया बूढ़ा रात में ही मर गया।।
शेष कौन सुनता है अब इतनी कांव कांव में।।
देखो फिर एक०

✍️
शेषमणि शर्मा 'इलाहाबादी'

1 टिप्पणी:

  1. यथार्थ में यही सब हो रहा है। वास्तव में मुझे कविता पढ़ने से बहुत दर्द की अनुभूति हो रही है

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