भागमभाग भरी जिंदगी
भागमभाग भरी जिंदगी
सुबह पाँच से रात के ग्यारह
कब बज जाते हैं,
और इस भागमभाग भरी जिंदगी में हम,
यूँ ही भागे चले जाते हैं।
अपना भी नहीं रखते हैं ध्यान,
बस व्यर्थ की उधेड़बुन में ही
लगे रह जाते हैं,
इस भागमभाग भरी जिंदगी में हम
यूँ ही भागे चले जाते हैं ।
जिंदगी आगे बढ़ती रहती है,
पर इच्छाएं खत्म नहीं होतीं,
करने को उन्हें पूरी,
जिंदगी भी पूरी कम पड़ती,
संतोष न करना सीखते हैं लोग,
माया के वशीभूत हो जाते हैं,
और इस भागमभाग भरी जिंदगी में हम,
यूँ ही भागे चले जाते हैं ।
जिंदगी तो होती है फूल सी हमारी,
पर समाज को नहीं उसका खिलना पसंद,
और समाज के चक्कर में पड़,
अपनी मुस्कुराहट को भी हम कर लेते हैं मंद,
ऐसे समाज रूपी कीड़े के कारण
हम कभी खुलकर नहीं खिल पाते हैं,
और इस भागमभाग भरी जिंदगी में हम
यूँ ही भागे चले जाते हैं।
यह खूबसूरत जिंदगी हमारी,
भगवान का दिया हुआ वरदान है,
इस पर है सिर्फ हक हमारा,
यह न किसी की कद्रदान है,
चलो जिए इसे खुल कर हम,
क्यों शिकन माथे पर हम लाते हैं,
बेवजह इसे भागमभाग बना,
हम यूँ ही क्यों भागे चले जाते हैं?
सुबह पाँच से रात के ग्यारह
कब जाते हैं,
इस भागमभाग भरी जिंदगी में हम
यूँ ही भागे चले जाते हैं।
हम यूँ ही भागे चले जाते हैं।।
✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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