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जिंदगी

जिंदगी

जिंदगी रुक, थोड़ा चल आहिस्ता
कि कुछ उलझनें हैं , पूरी सुलझी नहीं हैं।

कदमों को रख जमीन पर धीरे-धीरे
कि कई जंजीरे हैं ,रास्तों में बिखरी पड़ी हैं।

वास्ते गैरों के अभी जीना है और बाकी
कि अभी कुछ तस्वीरें हैं जो धुंधली पड़ी हैं।

जिंदगी रुक ,थोड़ा चल आहिस्ता
कि अभी लड़खड़ाना नहीं बहुत कर्ज चुकाने हैं।

अभी सफ़र अधूरा है अधूरी कहानियां हैं
कि मंजिलें अभी अधूरी हैं ,कई फर्ज निभाने हैं।

तेरे सफर से मेरे सफर की मंजिल पूरी नहीं होती
कि अभी तो बेफिक्री से सुकून के पंख फैलाने हैं।

जिंदगी रुक, थोड़ा चल आहिस्ता
कि साथ चलने का ,कठिन रास्ता बहुत है

दो पल ठहरकर देख , तू भी हंस ले मेरे साथ
कि तेरी बेरुखी से मेरा वास्ता बहुत है।

जिंदगी रुक ,थोड़ा चल आहिस्ता
की हथेलियों में अभी और भी लकीरें हैं।

जिंदगी रुक ,थोड़ा चल आहिस्ता
मुझे मिली नहीं अभी तक, कुछ ऐसी जागीरें है।

जिंदगी रुक, थोड़ा चल आहिस्ता
बांट लेना मुझसे मेरी जागीर ,सौगातें और सुकून भी

इल्तजा तुझसे बस इतनी सी है
जिंदगी रुक ,थोड़ा चल आहिस्ता.........

✍️
रचना
@अलकाखरे
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