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अगर पंख हमारे होते

"अगर पंख हमारे होते"

अगर पंख हमारे होते 
आसमान की सैर कर आते, 
इठलाते डाली-डाली पर 
ईश्वर को फिर शीश झुकाते। 

उमंग लेती हिलोरे मन में 
ऊषा की जब दिखती लालिमा,
ऋषियों की सुन ऋचा ध्वनि को
एक स्वर में गुंजन करते। 
ऐसे मन में शुद्धता लाते। 

ओढ़कर सतरंगी पुंज को
औरों को निद्रा से जगाते, 
अंतर्मन में ऊर्जा भरकर
अ: प्यारा संगीत सुनाते। 

कलरव करते उड़ते जाते 
खबर दूर देश की लाते, 
गमों को पीछे छोड़ कहीं 
घरौंदा प्रेम का दूर बनाते। 

चकाचौंध से दूर कहीं हम
छल से स्वयं को दूर रख पाते, 
जल की कल-कल धारा के संग 
झरने का मधुर गीत सुनाते। 

टप-टप गिरतीं जब वर्षा की बूंदें 
ठहर-ठहर कर तन को भिगाते, 
डमरु की फिर मस्त तान पर 
ढपली बजाकर ठुमके लगाते। 

तन की सारी प्यास बुझाते 
थमते न बस झूमते जाते, 
दवा-गोली का छोड़ ख्याल 
धमाचौकड़ी खूब मचाते। 
नजारे वे कितने प्यारे होते! 

पर्वत की चोटी तक जाते 
फसलों को भी चूमके आते, 
बन कर ईश का शांतिदूत हम 
भलाई कर संदेश फैलाते। 
मधुर गीत बस जाते जाते! 

यत्न करना सबको सिखाते 
रवि-रश्मि संग काम पे जाते, लहर-लहर उड़ संग पवन के 
वतन को अपने लौटके आते। 

शनै-शनै दिवस बीतता 
षड्यंत्र तिमिर फिर रचने लगता, 
संध्या आती फैलाए आँचल 
हम घरोंदों में छिप जाते। 

क्षम्यता हम सबको सिखाते 
त्रस्त होने से सबको बचाते, 
ज्ञप्ति देते सदा यही हम 
श्रम कर ही महान बन पाते।

✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश

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