शिक्षक
शिक्षक
जगत में जन्म पोषण परिवार देते हैं।
शिक्षक उसे सफलता का द्वार देते हैं।।
जीवन के मनोरथ सकल सिद्ध तुम्हारे हों,
यश कीर्ति बढ़े ऐसा संस्कार देते हैं।।
बिखरी हुई मृदा से मैं अधिक तो नहीं था,
बनके कुम्हार घट का आकार देते हैं।।
अज्ञानता की आंच मनस तक न पहुंच जाये,
शुद्ध बुद्ध बना ज्ञान का भण्डार देते हैं।।
ऐ मेरे दीप जाकर उजाला करो जग में,
यह आशीर्वाद शिष्य को हरबार देते हैं।।
जय हो पूज्य शिक्षक कृपा सिंधु मुक्ति दाता,
एक आप ही है क्षमा सौ सौ बार देते हैं।
शिक्षक के जैसा जगत में है दूसरा न कोई,
स्व स्वरूप अनुसंधान का आधार देते हैं।
आने का प्रायोजन भी कुछ शेष रह न पाये,
सघन तिमिर में सूर्य सा उजियार देते हैं।।
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शेषमणि शर्मा 'शेष'
प्रा०वि०- नक्कूपुर, वि०खं०- छानबे, जनपद-मीरजापुर उत्तर प्रदेश
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