अपेक्षाओं का बंधन
अपेक्षाओं का बंधन
रिश्तों में अपेक्षाएं,
जैसे जंजीर की बेड़ियां,
बंधते हैं जो इनमें,
उनकी जिंदगी होती है बेरहमियां।
एक गिलास पानी के बदले,
अपेक्षाएं होती हैं बड़ी,
कर देते हैं हम इन्वेस्टमेंट,
और फिर उम्मीद करते हैं मुनाफा।
बच्चों को समझते हैं बिजनेस,
नौकरियों को समझते हैं एहसान,
रिश्ते बनाते हैं व्यापार की तरह,
और फिर रोते हैं धोखे का मातम।
रिश्ते होते हैं भावनाओं के,
इन्हें समझने की जरूरत है,
जैसे फूलों को पानी की,
इन्हें प्यार की जरूरत है।
कर्म करें अच्छे बिना अपेक्षा के,
फलों के बारे में सोचना छोड़ दें,
तो ही मिलेंगे सच्चा प्यार और सम्मान,
और जीवन में आएगा सुख और आनंद।
इस कविता में बताया गया है कि रिश्तों में अपेक्षाएं रखना हानिकारक होता है। जब हम किसी को मदद करते हैं तो उसके बदले में कुछ पाने की उम्मीद करते हैं तो यह रिश्ता व्यापार बन जाता है। ऐसे रिश्तों में प्यार और सम्मान नहीं होता है।
असल में रिश्तों को समझने की जरूरत है। ये भावनाओं के आधार पर बने होते हैं। हमें दूसरों की मदद बिना किसी अपेक्षा के करनी चाहिए। इससे हमें खुशी और सुकून मिलेगा।
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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