मिट्टी के दियों को है, बच्चों के हाथों का इंतजार
मिट्टी के दियों को है, बच्चों के हाथों का इंतजार
दीपावली की रात थी,
घर-घर खुशियों का था समाँ,
रंग बिरंगे दिये जल रहे थे,
पूरा माहौल था भक्तिमय।
सुबह हुई तो बच्चों की,
उम्मीदें थीं नई नई,
मिट्टी के दिये इकट्ठा करने,
खिलौने बनाने की थी तैयारी।
बच्चे एक-दूसरे से बोल रहे थे,
"आज हम खूब खेलेंगे,
नये पटाखों से करेंगे धमाल,
पूरा दिन रहेगा मस्ती में।"
लेकिन आजकल बच्चे,
बहुत बदल गए हैं,
उनके हाथों में हैं मोबाइल फोन,
वो दिये से खेलना भूल गए हैं।
गलियों में मिट्टी के दिए,
बच्चों के हाथ की प्रतीक्षा में हैं,
लेकिन बच्चे उनसे दूर हैं,
उनके हाथों में हैं मोबाइल फोन।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
कोई टिप्पणी नहीं