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सीमा और आकाश

सीमा और आकाश


ज़मीन पर सीमाएँ हैं,
पर आसमान अनंत है।
जो ज़मीन पर टिके रहते हैं,
उनके लिए आकाश है।

जो अपनी ज़मीन न पहचानते,
वे सीमाएँ तोड़ते हैं।
पर वे पसर जाते हैं,
और आसमान छू नहीं पाते।

जो उर्ध्वमुखी हैं,
उन्हें आकाश चाहिए।
वे विचार, वाणी और कर्म में,
अनुशासित और संयमित रहते हैं।

वे आकाश छूते हैं,
और अनंत ऊँचाइयों पर पहुँचते हैं।
वे अपने लिए और दूसरों के लिए,
एक नया इतिहास रचते हैं।


कविता में, सीमाओं और आकाश के प्रतीकात्मक अर्थों का प्रयोग किया गया है। ज़मीन पर सीमाएँ, हमारे जीवन की सीमाएँ हैं, जो हमारे द्वारा निर्धारित की जाती हैं। आकाश, हमारे जीवन की संभावनाओं का प्रतीक है, जो अनंत है।

कवि कहता है कि जो लोग अपने जीवन की सीमाओं को पहचानते हैं और उनमें टिके रहते हैं, उनके लिए आकाश खुला है। वे अपने जीवन में विकास और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

दूसरी ओर, जो लोग अपनी सीमाओं को नहीं पहचानते और उन्हें तोड़ने की कोशिश करते हैं, वे सफल नहीं हो पाते। वे पसर जाते हैं, और अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं।

कवि का मानना है कि जो लोग अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं, उन्हें अपने विचार, वाणी और कर्म में अनुशासित और संयमित रहना चाहिए। वे अपने जीवन की सीमाओं को पहचानकर, उनमें टिके रहकर और उर्ध्वमुखी होकर, आकाश छू सकते हैं और अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।


✍️  रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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