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बच्चा सपनों को बुनता है


बच्चा सपनों को बुनता है


बच्चा सपनों को बुनता है,
उनमें उड़ता फिरता है,
उन्हें अपने हाथों से गढ़ता है,
उनमें अपनी दुनिया बनाता है।

उसके सपनों में कोई बंदिश नहीं,
वो उड़ सकता है आसमान में,
वो बन सकता है कोई भी,
वो कर सकता है कुछ भी।


उसके सपनों में कोई मर्यादा नहीं,
वो कर सकता है कुछ भी अच्छा,
वो दुनिया को बदल सकता है,
वो एक नया युग ला सकता है।

बच्चा सपनों को बुनता है,
वो एक नया कल लाता है,
वो एक नई दुनिया बनाता है,
वो एक नया इतिहास लिखता है।



✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए कविता उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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