आत्ममुग्धता और प्रचार की भूख
आत्ममुग्धता और प्रचार की भूख
हम खुद के हैं प्रचारक,
हम खुद के हैं प्रवक्ता,
अपने गुणों को स्वयं ही गाएं,
अपनी अच्छाइयों को स्वयं ही बताएं।
हम दूसरों की नहीं सुनते,
हम दूसरों की नहीं मानते,
हम केवल स्वयं को ही देखते,
हम केवल स्वयं को ही समझते।
हम अपनी प्रशंसा सुनना चाहते हैं,
हम अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं,
हम चाहते हैं कि सब हमें देखें,
हम चाहते हैं कि सब हमें पहचानें।
लेकिन क्या हमें पता है,
कि हमारी यह आत्ममुग्धता,
हमारी यह प्रचार की भूख,
हमें कितनी दूर ले जाएगी?
क्या हम इस अंधेरे में खो जाएंगे,
क्या हम इस अहंकार में डूब जाएंगे?
क्या हम कभी भी दूसरों को नहीं समझ पाएंगे,
क्या हम कभी भी दूसरों की बात नहीं मान पाएंगे?
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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