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’सीखने का संकट’ और ’सीखने की गरीबी’


’सीखने का संकट’ और ’सीखने की गरीबी’


ज्ञान का अभाव,
सीखने की गरीबी,
जीवन में अंधकार,
भविष्य में नैराश्य।

शिक्षा का अधिकार,
सबके लिए समान,
पर गरीब बच्चों के लिए,
यह है एक सपना।

आर्थिक तंगी,
अनपढ़ माता-पिता,
शिक्षकों की कमी,
पाठ्यक्रम कठिन।

इन समस्याओं के कारण,
बच्चे नहीं सीख पा रहे,
सीखने की गरीबी,
उनके जीवन में फैल रही।

सीखने की गरीबी,
है एक अभिशाप,
इससे बचने के लिए,
हमको करना है प्रयास।


इस कविता में सीखने की गरीबी और सीखने के संकट की स्थिति को व्यक्त किया गया है। आज शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं हैं, जिनके कारण बच्चे सही तरीके से शिक्षा नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। इन समस्याओं में आर्थिक तंगी, अनपढ़ माता-पिता, शिक्षकों की कमी, कठिन पाठ्यक्रम आदि शामिल हैं। इन समस्याओं के कारण बच्चे सीखने से दूर हो रहे हैं और उनके जीवन में अंधकार फैल रहा है।

कविता में आह्वान किया गया है कि हम सब मिलकर इन समस्याओं को दूर करें और शिक्षा के अधिकार को सबके लिए सुनिश्चित करें। इससे बच्चों को उज्जवल भविष्य मिल सकेगा।


✍️  रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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