स्त्री और मिट्टी
स्त्री और मिट्टी
स्त्री और मिट्टी, दोनों ही प्राचीन,
दोनों ही सृजनशील,
दोनों ही जीवनदायी,
दोनों ही शक्तिशाली।
स्त्री की कोख है मिट्टी की तरह,
जहां जीवन पनपता है,
स्त्री की ममता है मिट्टी की तरह,
जो सबको सींचती है।
स्त्री की उर्वरता है मिट्टी की तरह,
जो सबको पोषित करती है,
स्त्री का त्याग है मिट्टी की तरह,
जो सबको सहन करती है।
स्त्री और मिट्टी, दोनों ही एक हैं,
दोनों ही अविभाज्य,
दोनों ही प्रकृति के अभिन्न अंग,
दोनों ही जीवन का आधार।
इस कविता में स्त्री और मिट्टी के बीच के समानता और जुड़ाव को दर्शाया गया है। दोनों ही प्राकृतिक संसाधन हैं, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। स्त्री की कोख मिट्टी की तरह है, जहां जीवन पनपता है। स्त्री की ममता मिट्टी की तरह है, जो सबको सींचती है। स्त्री की उर्वरता मिट्टी की तरह है, जो सबको पोषित करती है। स्त्री का त्याग मिट्टी की तरह है, जो सबको सहन करती है। इस प्रकार, स्त्री और मिट्टी दोनों ही एक हैं और प्रकृति के अभिन्न अंग हैं।
यह कविता भावपूर्ण है क्योंकि इसमें स्त्री और मिट्टी के बीच के गहन संबंध को व्यक्त किया गया है। यह कविता स्त्रियों के सम्मान और उनके योगदान को भी दर्शाती है।
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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