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बिकाऊ कलम

बिकाऊ कलम

बिकाऊ कलम, बिकाऊ कलम,
तुम कैसे लिखते हो?
सच्चा लेखन, सच्चा लेखन,
तुमसे कैसे निकलता है?


अब तो तुम भी,
बिकने लगे हो बाजार में,
अपने विचारों को,
बेचने लगे हो पैसे में।


एक समय था,
जब तुम सत्य के पुजारी थे,
अब तो तुम,
बने बैठे हो झूठ के कारीगर।


तुमने बेच दिया,
अपना ईमान और चरित्र,
अब तो तुम,
बने बैठे हो नकली शहीद।


तुमने बेच दिया,
अपना कलम का सम्मान,
अब तो तुम,
बने बैठे हो कलम के धोखेबाज।


बिकाऊ कलम, बिकाऊ कलम,
तुमसे अब उम्मीद नहीं,
सच्चा लेखन, सच्चा लेखन,
तुमसे अब नहीं निकलेगा।



इस कविता में लेखक, लिखने-पढ़ने वालों की बिकाऊ प्रवृत्ति पर तंज कसता है। वह कहता है कि एक समय था जब लिखने-पढ़ने वाले सच्चाई के लिए लड़ते थे, लेकिन अब वे पैसे के लिए सब कुछ बेचने लगे हैं। वे अपने विचारों को बेचकर, अपने ईमान और चरित्र को बेचकर, और अपने कलम का सम्मान बेचकर, खुद को कलम के धोखेबाज साबित कर रहे हैं।


✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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