कहीं हम शल्य तो नहीं हो रहे?
कहीं हम शल्य तो नहीं हो रहे?
शल्य की भूमिका
कर्ण था महारथी,
शल्य था सारथी।
कर्ण को हराने,
शल्य ने बनाया षड्यंत्र।
कर्ण को हराने के लिए,
शल्य ने किया हतोत्साहित।
कर्ण के गुणों को छिपा कर,
कर्ण को बनाया हताश।
कर्ण की पराजय हुई,
और शल्य की जीत हुई।
परंतु शल्य का मन,
कर्ण की हार से घिरा रहा।
आज हम भी शल्य बनते हैं
आज हम भी शल्य बनते हैं,
अपने आस-पास के लोगों को।
अपनी बातों से हम,
उनके हौसले को तोड़ते हैं।
हम कहते हैं कि दुनिया खराब है,
और कुछ भी अच्छा नहीं है।
हम कहते हैं कि लोग स्वार्थी हैं,
और किसी की परवाह नहीं करते।
ऐसी बातें सुनकर,
लोग हताश हो जाते हैं।
वे अपने लक्ष्य को पाने से,
हार मानने लगते हैं।
आइए हम शल्य न बनें
आइए हम शल्य न बनें,
अपने आस-पास के लोगों को।
आइए हम उनका हौसला बढ़ाएं,
और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
आइए हम उन्हें बताएं कि,
दुनिया में अच्छाई भी है।
आइए हम उन्हें बताएं कि,
लोगों में प्रेम और करुणा भी है।
आइए हम अपने शब्दों से,
दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाएं।
आइए हम अपने शब्दों से,
लोगों को प्रेरित करें।
कविता में कर्ण और शल्य के उदाहरण से यह बताया गया है कि कैसे अनजाने में हम दूसरों के हौसलों को तोड़ सकते हैं। कर्ण एक महारथी थे, लेकिन शल्य के नकारात्मक शब्दों ने उनके मन में निराशा भर दी। इसी तरह, हम भी अपने आस-पास के लोगों को अपने नकारात्मक शब्दों से हतोत्साहित कर सकते हैं।
कविता के अंत में कवि ने कहा है कि हमें अपने शब्दों से दूसरों के मन में आशा और विश्वास भरना चाहिए। ऐसा करके हम शल्य नहीं होंगे, बल्कि श्रीकृष्ण की तरह महारथी बनेंगे।
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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