मेरा तिरंगा
मेरा तिरंगा
लहराता रहे मेरा तिरंगा
और मैं अपलक निहारूं
चूम लूं बढ़कर कभी मैं
और फिर पल-पल संवारुं।।
तीन रंगों से श्रंगार करके
तू गगन में छा रहा है
जोश तन में खूब भरता
भय सब मन से जा रहा है।।
हिफाजत में तत्पर सदा ही
कुर्बान तुझ पर जान मेरी
मेरी रग रग में बसा तू
निछावर तुझपे शान मेरी।।
बेदाग है तू, बेदाग रहना
तुम देश के हो प्राण
चमक है आंखों में तुझसे
करता प्रगतिशील निर्माण।।
एक सुर एक ताल देकर
राग भरता है हृदय में
एक सूत्र में बांध राष्ट्र को
लुटाता है पराग विजय में।।
✍️ लेखक : राजेश 'राज', कन्नौज
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