ग़ज़ल
ग़ज़ल
बातों बातों में नही तलवार होना चाहिए,
बात सच्ची हो अगर आभार होना चाहिए ।
डूबती कश्ती कहां जब तेज हों तूफान भी,
हौसलों से आदमी को पार होना चाहिए ।
जो दिखावे में रहे हैं वो कहीं दिखते नही,
शख्स को भी अस्ल में दमदार होना चाहिए ।
खामुशी को ओढ़कर चुपचाप भी रहिये नही,
जब जरूरी हो जहाँ इजहार होना चाहिए ।
कौन है अपना यहां पर कौन बेगाना हुआ,
मिलने जुलने में जरा हुशियार होना चाहिए ।
पेंड़ की छाया घनेरी जब हमें भाने लगे,
धूप सहने के लिए तैयार होना चाहिए ।
एक ही उम्मीद नीरू एक ही आशा रही,
आ रहा है जो समय गुलजार होना चाहिए ।
✍️ लेखिका : निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
जनपद – बाराबंकी
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