चुपचाप काश ये हो जाए।
चुपचाप काश ये हो जाए।
हिरनों के दल कविता गाएं
फूलों के दल बारिश लाएं
खग कलरव से तरु डर जाएं
फिर भाग ओट में छिप जाएं।
चुपचाप काश ये हो जाए।।
सियार सभी स्कूल चलाएं
वानर सभी पढ़ने जाएं
हाथी टीचर बन जाएं
गधा घंटी रोज़ बजाए
चुपचाप काश ये हो जाए।।
पौधे बारिश से डर जाएं
मछलियां पेड़ पर चढ़ जाएं
सूरज रिमझिम जल बरसाए
फिर चंदा गर्मी फैलाए।
चुपचाप काश ये हो जाए।।
बुजुर्ग शरारत कर पाएं
बच्चे उनको खुद समझाएं
महिलाएं सिर्फ खाना खाएं
आलसी पुरुष पकवान बनाएं।
चुपचाप काश ये हो जाए।।
✍️ लेखक : राजेश 'राज', कन्नौज
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