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गुरु-शिष्य संबंध


गुरु-शिष्य संबंध


अंगूठे से कुम्हार सानता,
मिट्टी को घड़े में ढालता।
गुरु भी सानता शिष्य को,
ज्ञान का घड़ा पलटाता।


कुम्हार कभी-कभी मारे,
मिट्टी को सही आकार दे।
गुरु भी कभी-कभी डारे,
शिष्य को सही मार्ग दे।



कुम्हार बाहर से थपथपाता,
भीतर से सहारा देता।
गुरु भी बाहर से डारे,
भीतर से प्यार देता।


कुम्हार के हाथ से बना,
घड़ा हो जाता है सुन्दर।
गुरु के हाथ से बना,
शिष्य हो जाता है विद्वान।


(उक्त रचना कबीरवाणी के अर्थ पर आधारित है।)



✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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