बिखरे सपने
अपने हाथों के बंधन इन हाथों में छोड़ गए
कोरे कागज सा यह जीवन,
अनजान सुरभि से था तन मन,
तुमने मेहंदी सा रचकर,
सब रंग सुहागों वाले भरकर,
सांसों में सांसो को बोकर,
अपनी सांसों की सरगम इन सांसों में छोड़ गए
नभ से भी.....
अपने हाथों....
दिल के सारे हैं घाव रिसे,
बन मन जोगी सा फिरता है
इस कनपुरिया भाषा में,
संगम नगरी की बोली घोली,
शब्दों में अपनी बेचैनी,
एहसासों को इन बातों में छोड़ गए
नभ से....
अपने हाथों....
चंदा की शोख गवाही में,एक दूजे की आंखों में देखे जो,
वो सारे स्वपन अधूरे हैं
बाकी है कुछ नाम में मेरे,
संग नाम तेरे ही जानम हम पूरे हैं
इन नैनों के जलते दीपक,
मावस् सी रातों में छोड़ गए
नभ से....
अपने हाथों....
✍️ लेखक
शुभम मिश्र 'अग्नि'
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय खेवरई
विकास क्षेत्र फतेहपुर चौरासी
जनपद उन्नाव
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