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अंतर्मन के विचार

अंतर्मन के विचार


नए मोड़, नई मंजिलें
नए लोग, नए काफिले
नया राग, नया संगीत
नए शब्द, नए गीत
नए सुर, नई वीणा 
दरकिनार सब कर दूं तो
निज लक्ष्य तक जाऊं कैसे?


जीवन की आपाधापी में
गतिमान रहता हूं निशदिन
जैसे गतिशील हैं चांद- तारे,
दुविधा में फंसकर मैं सोचूं
ऊर्जा अपव्यय न ठीक किंचित
पर मितव्ययी बन सचमुच मैं
निज लक्ष्य तक जाऊं कैसे?


मन के भीतर- भीतर हरदम
उत्कृष्ट मंजिल की परिकल्पना
दक्षता संवर्धन का प्रयास भी
समुचित नवाचारों के संग- संग 
गंतव्य की ओर अग्रसर मैं 
पर बिना थके पांवों से सुदूर 
निज लक्ष्य तक जाऊं कैसे?


सरल मन से कठिन संरचना
समझने हेतु सदैव ही तत्पर
नैसर्गिक कौशल सीखने की लय पर
जीवन की बारीकियां सीखे बिन
जीवन में रोचकता के पथ पर
अर्थ विहीन जीवन शैली से
निज लक्ष्य तक जाऊं कैसे?



✍️ लेखक : राजेश 'राज', कन्नौज 

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