भूख
"भूख"
घर से दूर बुलाती भूख,
घर की राह दिखाती भूख।
है बहुत तड़पाती भूख,
सड़कों पर सो जाती भूख।
गला भी अब गया है सूख,
चलते चलते सहते धूप।
या रब इनकी रक्षा कर,
जान न ले ले इनकी भूख।
यहां वहां जो भटक रहे,
कैसे मिटाए अपनी भूख।
बच गये जो कोरोना से,
मार न डाले पापी भूख।
काश यह सच हो जाता तो,
खुशियां मैं भी मनाता तो।
सब के सब बच जाते जन,
कोरोना से बस मर जाती भूख।
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रचयिता -
आमिर फारूक
सहायक अध्यापक
उच्च प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद माफ़ी,
विकास क्षेत्र-सालारपुर
जनपद-बदायूं, उत्तर प्रदेश
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