कुटिल कोरोना
भय ने मन को घेरा कैसे,देखूं सपन सलोना,
दबे पांव ये आ धमका है, कपटी, क्रूर, करोना।
सड़कें है वीरान, कहीं ना,अब तो धक्कम-धक्का,
ठप्प हुए सब काम-काज हैं, बैठे हाथ मलो ना।
मेले-ठेले, बाग-बगीचे, सब हैं खाली-खाली,
धर हाथों में हाथ घरों में,ठंडी आह भरो ना।
पर्वत काटे, नदियां रोकीं, घोला ज़हर हवा में
बीमारी ने पैर पसारे, अब काहे का रोना।
असर करे ना दवा वैद्य की, हाकिम नज़र उतारें,
झाड़-फूंक भी काम न आवे, ना ही जादू-टोना।
हाथ मिलाना, संग-संग खाना, गले लगाना भूले,
चेहरा धोना भूले, दिनभर,अब हाथों को धोना।
अब बचाव ही बस इलाज है, सावधान हो जाएं,
साफ रखेंगे गली-मोहल्ला, घर का कोना-कोना।
मरने से क्या डरना भाई, सच्चे कर्म करो ना,
जीतेगा भारत भागेगा, कपटी, कुटिल, करोना।
।।सर्वे संतु निरामया।।
कविता तिवारी,
प्रा0वि0, गाजीपुर
विकास खण्ड-बहुआ
जनपद-फतेहपुर
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