गर्मियों की छुट्टी
गर्मियों की छुट्टी
चलो चलते हैं अपने. घर
कि अब. झूले बुलाते हैं
बुलाती बाग की डालें
वो टूटे घर बुलाते हैं |
बहुत दिन हो चुके घर को गए
अब मां के आंचल तक
चलो सब भूल के
अपने वतन के घर बुलाते है |
वो गिल्ली नांचते लट्टू पतंगें
जग गयी हैं अब
लो थामो डोर बल्ला
गिल्लियां अब घर बुलाते हैं |
दरख्ते नीम को देखे
इक अरसा कब से गुज़रा है
चलो अब जून की गर्मी में
पत्ते घर बुलाते हैं |
शहर से लौट आए हैं
मेरे वो यार बचपन के
चलो अब घर चलें
वो गांव के रस्ते बुलाते हैं |
वो घण्टी कुल्फियों की
वो बडे़ से बर्फ के गोले
वो पानी के बताशे
चाट के ठेले बुलाते हैं |
वो गलियां गांव की
कलियां शज़र की
सेम की फलियां
चलो वो घर की कुण्डी,
घर के वो ताले बुलाते हैं |
चलो चलते हैं अपने घर.......|
✍️
अभिषेक बाजपेयी (स०अ०)
प्रा0 वि0 तकियापुरवा
निघासन
कोई टिप्पणी नहीं