नशा
नशा
नशा है करता नाश उसी का
जिसने है समझा जरिया खुशी का
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी
निशिदिन जो भी कमाया
थोड़ी थोड़ी जो भी जोड़ी
लुट गई जिसने गले लगाया
घर बना है मैदान जंग-ए-कशी का
जिसने है समझा जरिया खुशी का
घर भूला संसार को भूला
बच्चे भूला परिवार को भूला
शौक़ की ख़ातिर अपने उसने
मुँह से लगाया इसको जिसने
कर दिया ख़ून घर की हँसी का
जिसने है समझा जरिया खुशी का
पल पल उसकी गलती काया
जेब से उसके जाती माया
खोके विवेक और होके अंधा
करता तैयार खुद ही फंदा
खुशियाँ रोतीं रोना अपनी बेबसी का
जिसने है समझा जरिया खुशी का
बीवी रोती सास रोती
बाप रोता मात रोती
जायदाद बिकी और बिक गई कोठी
मोहताज हुआ अब, न मिलती रोटी
ख़ून के आँसू रोता है
होके दिल अब दुखी सा
जिसने है समझा जरिया खुशी का
जो निकल गया इस दलदल से
जो पार गया इस जंगल से
समझा जिसने ई ज़रिया खुदकुशी का
बस रहा राज घर बचा उसी का ।।
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