द्वार मन का हमारे लिए खोल दो शुष्क मौसम में रस-माधुरी घोल दो क्यों प्रकम्पित अधर, मौन ओढ़े रहें बात दिल में रखो मत, चलो बोल दो - पुष्पेन्द्र यादव
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