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चवन्नी...

स्कूल जाते वक़्त की
राहें याद आती हैं ;
कुछ खाने को दी हुई
माँ की अठन्नी याद आती है,
नोटों का ज़माना है
सिक्कों को कौन पूछता है;
नानी से विदाई में मिली
वो चवन्नी याद आती है,
कुछ खाने को दी हुई
माँ की अठन्नी याद आती है....
        पिज़्ज़ा बर्गर के ज़माने में 
        देशीपन कहाँ है अब;
        कहाँ वो चूरन
        कहाँ वो मीठी गोली ही है अब  
        मिठास से भरी जलेबी बेचती
        बुधन्नी याद आती
        कुछ खाने को दी हुई
        माँ की अठन्नी याद आती है.....
कहाँ समय है आज
गुल्लक की खन खन सुनने का;
बचत की सीख भी
कोई देता कहाँ है अब;
गुल्लक में एक एक कर रखी
दुअन्नी याद आती है,
कुछ खाने को दी हुई
माँ की अठन्नी याद आती है
स्कूल जाते वक़्त की
राहें याद आती हैं।

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