घाव यह कैसे भरे?
घायल हुआ बचपन सुहाना, ये विधाता क्या करे।
अब है कहाँ क़ानून-शासन, मौन सब क्यों हैं धरे।
अपराध क्या इनका कहो तुम, भाग्य क्यों इनसे परे।
जीवन जले क्यों रोज़ इनका, रोज़ आख़िर क्यों मरे॥१॥
सब लाल ये भी देश के हैं, हक़ सुनो इनका अरे।
थोथी तरक़्क़ी लोग झूठे, बोल ये मेरे खरे।
आहत बड़ी माँ भारती हैं, घाव हैं उनके हरे।
है सोचना मिल बैठ हमको, घाव यह कैसे भरे॥२॥
रचनाकार- निर्दोष दीक्षित
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काव्य विधा- हरिगीतिका छंद
शिल्प- हरिगीतिका चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। प्रत्येक चरण में 28 मात्रायें, 16-12 की यति पर व्यवस्थित होती हैं तथा प्रत्येक चरण का अंत लघु-गुरु से होता है।
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