कथा सुनो शबाब की
कथा सुनो शबाब की
सवाल की जवाब की
कली खिली गुलाब की
बड़े हसीन ख़ाब की
नया नया विहान था
घड़ी घड़ी गुमान था
हसीन सा बहाव था
जुड़ाव था लगाव था
घड़ी घड़ी गुमान था
हसीन सा बहाव था
जुड़ाव था लगाव था
तभी विपत्ति आ गई
तुषार वृष्टि छा गई
बहार को बहा गई
ख़ुमार हो हवा गई
तुषार वृष्टि छा गई
बहार को बहा गई
ख़ुमार हो हवा गई
नक़ाब में रक़ीब थे
सभी वही क़रीब थे
हमीं बड़े अजीब थे
हमीं बड़े ग़रीब थे
सभी वही क़रीब थे
हमीं बड़े अजीब थे
हमीं बड़े ग़रीब थे
रचना- निर्दोष दीक्षित
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काव्य विधा- प्रमाणिका छंद
विधान- लघु गुरु के 4 जोड़े, चार चरण
मात्राभार- (12 12 12 12 )4
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